हाउस वाइफ- 24 घंटे की नौकरी
हाउस वाइफ- 24 घंटे की नौकरी
दिव्या के देवर विकास की शादी की सारी रस्में खत्म होती हैं। और सभी अपने-अपने कमरे में आराम करने को चले जाते हैं।
विकास की शादी आकृति से होती है। जो की पेशे से सी.ए है।
और दिव्या एक हाउसवाइफ है। दिव्या के परिवार में उसके देवर और देवरानी के अलावा उसकी सास प्रभा, पति रौशन और दिव्या का सात वर्षीय बेटा केशव शामिल है। दिव्या के ससुर जी का कुछ वर्षों पहले ही देहांत हो चुका है।
दूसरे दिन सुबह आकृति की पहली रसोई थी। जिसमें आकृति को सभी के लिए खीर बनाना था। प्रभा, आकृति को रसोई में बुलाकर खीर बनाने की कहती है। रसोई में दिव्या भी मौजूद थी। पर आकृति अपनी सास से कहती है कि उसे खीर बनाना नही आता। तभी प्रभा, आकृति से कहती है कि कोई बात नही। दिव्या उसे खीर बनाना सीखा देगी। प्रभा इतना कह कर रसोई से बाहर चली जाती है। दिव्या आकृति को खीर बनाना सीखाने लगती है। तभी आकृति, दिव्या से कहती है, -"वो क्या है ना भाभी... मुझे कभी खाना बनाने सीखने का समय ही नही मिला।
और मैंने सीखने की कोई जरूरत भी नही समझी। खाना बनाने में कौन टाइम वेस्ट करे..? पैसा कमाना बहुत बड़ी बात है। आप तो हाउस वाइफ है ना.. तो आपको तो ज़ाहिर सी बात है खाना बनाना आएगा ही।"
दिव्या को आकृति की बातें थोड़ी अटपटी तो लगती है पर उसने मुस्कुरास्ते हुए बोला,-"कोई बात नही। मैं सीखा दूँगी तुम्हे.. तुम टेंशन मत लो। आकृति, -" हाँ.. ओके.. बोल कर दिव्या की बात रख लेती है और बदले में कुछ और जवाब नही देती है। पहली रसोई की भी रस्म अच्छे से निपट जाती है।
आकृति को ऑफिस से ज्यादा दिन की छुट्टी नही मिली थी। इसलिए उसे दूसरे दिन से ही ऑफिस ज्वॉइन करना था।
दूसरे दिन सुबह आकृति 8 बजे किचन में आती है और पाती है कि दिव्या ने नाश्ता रेडी कर दिया है। केशव भी स्कूल के लिए जा चुका है। और प्रभा और दिव्या नहा-धो कर तैयार हैं और घर में पूजा भी हो चुकी है। तभी प्रभा, आकृति को सुबह जल्दी जागने को बोलती है ताकि वह भी पूजा के समय मौजूद रह सके और दिव्या की रसोई भी मदद भी कर सके। आकृति को यह बात अच्छी नही लगती पर वह अपनी सास से कुछ नही बोलती है। वह चुपचाप वहाँ से निकल कर अपने कमरे में ऑफिस के लिए रेडी होने को चली जाती है। और वह कुछ देर में रेडी हो कर ऑफिस के लिए निकल जाती है। दिव्या, रौशन के ऑफिस ले जाने के लिए टिफ़िन पैक करती है। रौशन पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। रौशन के ऑफिस चले जाने के बाद प्रभा और दिव्या इकट्ठे बैठ कर नाश्ता करते हैं। बातों-बातों में प्रभा, दिव्या से बोलती है कि वह आकृति से घर के कामों में हाथ बटाने को बोला करे। नही तो वो अपनी केवल जॉब को पकड़ कर बैठी रहेगी और घर का कोई भी काम नही करेगी। मेरे घुटनों में दर्द के वज़ह से मैं रसोई में ज्यादा देर खड़े हो कर तुम्हारी मदद नहीं कर सकती पर फिर भी मुझसे जितना होता है मैं करती हूँ। पर तुम आकृति से तो मदद लो। दिव्या अपनी सास की बातें सुन कर बोलती है, -"मम्मी जी.. आकृति भी धीरे-धीरे सारे काम अच्छे से करना सीख जाएगी। अभी उसकी शादी को केवल दो दिन ही हुए हैं। हमें उसे थोड़ा वक्त देना चाहिए।" प्रभा को लगता है शायद दिव्या सही ही बोल रही है। कुछ दिनों में सब सही हो जाएगा। नाश्ता करने के बाद दिव्या अपने कमरे को समेटती है और बिस्तर पर जैसे ही आराम करने को लेटती ही है कि तभी उसे याद आता है कि उसे वाशिंग मशीन में कपड़े धोने को डालना है दिव्या कपड़े धोकर सूखने को डाल देती है तभी उसकी घड़ी पर नजर पड़ती है और वह देखती है कि 12:00 बज चुके हैं। दिव्या का एक बार फिर से रसोई में जाने का वक्त हो चुका था क्योंकि केशव 1:00 बजे स्कूल से आ जाता है और आते ही उसे जोरों की भूख लग जाती है। दिव्या रसोई में जाकर दोपहर के खाने की तैयारियों में लग जाती है। केशव स्कूल से 1:00 बजे आता है वह उसका यूनिफॉर्म चेंज करवा कर उसे खाना खिलाती है। केशव खाना खाने के बाद हर रोज अपनी माँ के साथ कुछ देर बिताता है जिसमें वह अपने स्कूल के किस्से और कहानियां अपनी माँ को सुनाता है इन सब में दिव्या का समय कब व्यतीत हो जाता है वह उसे पता नहीं चलता और दोपहर के 3:00 बज चुके होते हैं। फिर केशव थोड़ी देर सोने को चला जाता है। उसके बाद प्रभा और दिव्या दोपहर का खाना खाते हैं तब तक केशव उठ चुका होता है और उसे स्कूल का होमवर्क करवाना होता है। इन सब में शाम की चाय और रात के खाने की तैयारियों का वक्त हो चुका होता है। 7:00 बजे आकृति ऑफिस से आती है और वह देखती है कि दिव्या रात के खाने की तैयारियों में जुटी है। ऑफिस से आते ही आकृति, दिव्या से कहती है, -"भाभी क्या मुझे एक कप चाय मिलेगी मैं बहुत थक गई हूँ। आज बहुत मीटिंग्स थीं। दिव्या मुस्कुराते हुए बोलती है ल, -"ठीक है अभी देती हूँ।" आकृति चाय पी कर अपने कमरे में आराम करने को चली जाती है। रसोई में दिव्या की मदद करने को आगे भी नही आती। रात के 8:00 बजते हैं और सभी अपने-अपने ऑफिस से आ चुके होते हैं। दिव्या सभी के लिए चाय बनाती है थोड़ी देर सब एक साथ बैठकर गप्पे मारते हैं उसके बाद रात के खाने का वक्त हो जाता है। सभी इकट्ठे बैठकर रात का खाना खाते हैं।रौशन और विकास अपने अपने कमरे में आराम करने को चले जाते हैं और केशव भी तब तक सो चुका होता है। प्रभा और दिव्या मिलकर किचन समेटते हैं। इन सब में भी आकृति उनकी कोई मदद नहीं करती। बल्कि आकृति वही डाइनिंग टेबल पर बैठे-बैठे अपने फोन पर लगी थी।
कुछ दिनों तक बस ऐसा ही चलता रहता है। प्रभा को लगता है की आकृति को अब टोकना जरूरी हो गया है। वह खुद दिव्या के किसी कामों में हाथ नहीं बटाएगी । एक दिन आकृति जब ऑफिस से आती है और दिव्या से अपने लिए चाय बनाने को कहती है। तब प्रभा, आकृति से कहती है कि वह खुद ही चाय बना ले क्योंकि दिव्या रात के खाने की तैयारियों में लगी है। तभी आकृति अपनी सास को जवाब देती है कि अगर दिव्या लगे हाथ एक कप चाय बना देगी तो उसमें उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। ऐसे भी तो वह दिन भर घर में ही रहती हैं और आकृति ऑफिस से थक कर आती है। दिव्या, आकृति की बातें सुनकर केवल उसे घूर रही थी। आज उसे समझ आ रहा था कि आखिर आकृति के दिमाग में चल क्या रहा है। पर प्रभा यह सब तो बहुत पहले से ही समझ रही थी। इन बातों के लिए प्रभा ने दिव्या को पहले ही चेतावनी दी थी। पर दिव्या को लगा था कि आकृति की अभी नई नई शादी हुई है धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।
प्रभा, आकृति की बातें सुनकर गुस्सा हो जाती है और वह आकृति से कहती है, आकृति में समझ रही हूँ कि तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है। तुम्हें क्या लगता है कि दिव्या दिन भर घर में आराम करती रहती है और तुम घर के बाहर जाकर पैसे कमाती हो। इसलिए तुम घर के कामों में दिव्या की कोई मदद नही करोगी। तुम्हें पता भी है कि एक हाउस वाइफ हो ना कोई आसान बात नहीं है। दिव्या सुबह 6:00 बजे से उठती है और रात की 11:00 बजे तक बिज़ी रहती है। सबका ख्याल भी वह अकेले ही रखती है। तुम आराम से 8:00 बजे उठती हो और नाश्ता कर ऑफिस चली जाती हो फिर 7:00 बजे ऑफिस से आती हो और अपने कमरे में दोबारा से आराम करने को चली जाती हो। मैं जानती हूँ कि तुम अपने ऑफिस के कामों में बहुत बिज़ी रहती हो पर ऐसा तो नहीं कि जो हाउस वाइफ है तुम उनकी कोई कीमत ही ना समझो।
मैंने तुमसे आज तक कोई जिक्र नहीं किया पर शायद तुम्हें पता नहीं है कि दिव्या भी एक बैंक में जॉब कर रही थी पर जब तुम्हारे ससुर जी की तबीयत खराब हुई उस वक्त केशव केवल एक वर्ष का था। मुझे तुम्हारे ससुर जी की देखभाल और दवाइयों से वक्त नहीं मिल पाता था इसलिए मैं घर का कोई काम नहीं कर पाती थी। दिव्या ने सभी की भलाई के लिए जॉब छोड़ने का निर्णय लिया था। और उस वक़्त दिव्या के लिए यह निर्णय लेना कोई आसान नही था। ऐसी बात नहीं है कि दिव्या कोई हाउसवाइफ है तो अब उसकी कोई अहमियत नहीं है। तुम उसे बार-बार हाउस वाइफ हाउस वाइफ का ताना मारती हो। यह सब सुनकर आकृति की आँखे फटी थीं। उसने दिव्या से कहा,-" भाभी आपने जॉब क्यों छोड़ी थी।" दिव्या ने बोला, -"अरे छोड़ो ना आकृति यह सब पुरानी बातें हैं। तुम मम्मी जी की बातों का बुरा मत मानो।" तभी आकृति दिव्या से कहती है, -" सॉरी भाभी मुझे आपसे ऐसा नहीं बोलना चाहिए था। मुझे समझना चाहिए कि एक हाउसवाइफ 24/7 बिज़ी रहती हैं। उन्हें भी उतनी ही इज्जत और उतना ही मान-सम्मान मिलना चाहिए जितना कि एक वर्किंग वुमन को मिलता है।
©स्वाति चरण पहाड़ी
#दैनिक_प्रतियो
Anjali korde
19-Jul-2023 08:31 PM
Good
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kashish
18-Jul-2023 10:02 AM
Very nice
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Gunjan Kamal
17-Jul-2023 01:31 AM
बेहतरीन
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